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Showing posts from August, 2023

बुद्ध शिष्य आनंद और वैश्या की कहानी (Buddh shishya Anand aur vaishya ki kahani)

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एक समय था जब भगवान बुद्ध की शरण में दीक्षा ले रहे भिक्षुओं को कई नियमों का पालन करना पड़ता था। वे (भिक्षु) किसी के भी घर तीन दिन तक ही रुक सकते थे। यह नियम स्वयं गौतम बुद्ध ने बनाया था। इस नियम का तात्पर्य यह था कि उनकी सेवा में लगे लोगों को किसी तरह की कोई दिक्कत न पहुंचे। बुद्ध और उनके भिक्षु जब यात्राओं पर निकलते थे, तो वे रास्ते में आने वाले अक्सर गरीब घरों में ही शरण लेते थे। वे इन घरों में अधिकतम तीन दिनों तक रुकने के बाद अगली यात्रा पर निकल जाते थे। एक समय की बात है वे इसी तरह यात्रा के दौरान एक गांव पहुंचे। बुद्ध और उनके शिष्य अपने रहने के लिए जगह ढूंढ रहे थे। बुद्ध के शिष्य आनंद को एक बहुत ही खूबसूरत वेश्या ने अपने घर रहने को आमंत्रित किया। आनंद ने उसे कहा कि वह उसके घर बुद्ध के अनुमति लेकर ही रह सकता है। वैश्या युवती ने वासना भारी श्वर में कही- क्या  तुम्हें इसके लिए सचमुच अपने गुरू से अनुमति लेनी होगी? मैं जानता हूं कि वह मेरे बात मान जाएंगे लेकिन उनसे पूछना मेरा कर्तव्य बनता है। आनंद ने बुद्ध से पूछा- हे बुद्ध! इस गांव में...

होली The Festival of colours

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प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, इसके बाद अगले ही दिन प्रतिपदा तिथि को रंगों की होली खेली जाती है। होली त्यौहार का अपना एक अलग ही महत्व है। इस दिन लोग खुशी से एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। सभी बच्चे एकजुट होकर होली खेलते हैं। वे सभी रंग घोल कर एक दूसरे के ऊपर पिचकारी छोड़ते हैं। सभी बच्चे खूब रंग मस्तियां करते हैं। फिर संध्याकाल को सभी बच्चे बड़े बुजुर्ग के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। उस दिन लोग अपने-अपने घर में अच्छे-अच्छे पकवान पकाते हैं। सभी लोग अपने-अपने दोस्तों को घर में बुलाकर विशेष पकवान खुशीपूर्वक खाते हैं। सच में यह एक अनोखा पर्व है। यह पर्व जोश और उत्साह का पर्व है। लोग इस पर्व में खूब मस्तियां करते हैं। यह दिन अतीत की गलतियों को खत्म करने और खुद से छुटकारा पाने का उत्सव का दिन है, दूसरों से मिलकर संघर्षों को खत्म (समाप्त) करने का दिन है, भूलने (विस्मरण) और माफ करने का दिन (दिवस) है।  होली का इतिहास बहुत पुराना है। इस पर्व का उल्लेख कई एतिहासिक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित मिलता है। "होलिकोत्सव" के त्योहार का उल्लेख 7वीं (7th ce...

मां सरस्वती The Goddess of Knowledge

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विद्या की देवी मां सरस्वती की पुजा हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी (बसंत पंचमी) को बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। वेद जननी मां सरस्वती ज्ञान और चेतना की प्रतिनिधित्व करतीं हैं। मां सरस्वती को कई नाम से जाना जाता है जैसे : सरस्वती, भारती, शारदा और हंसवाहिनी है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि पर मां हंसवाहिनी शारदा की उपत्ति भी हुई थी।  विशेषकर छात्रों, कला, संगीत आदि क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन को खासतौर पर मनाते हैं। इस दिन ज्ञान की देवी को पीले रंग की चीजों का भोग लगाया जाता है। इतना ही नहीं इस दिन पीले रंग के कपड़े भी पहने जाते हैं। इस दिन पूजा-आराधना करने से मां सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती हैं और ज्ञान का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। देवी सरस्वती संपूर्ण श्वेत रंग से युक्त हैं क्योंकि सफेद रंग पवित्रता, सच्चे ज्ञान और दिव्य ज्ञान का प्रतीक है । जल जिस पर उनका कमल (Lotus) का आसन बना हुआ है, ज्ञान के शाश्वत प्रवाह का प्रतीक है।  वैसे तो सप्ताह में इनका दिन गुरुवार माना जाता है, क्योंकि गुरु को ज्योतिष में विद्या का कारक माना गया है। हंसवाहिनी माता सरस्वती शांत एवं सौम्...

मकर संक्रांति Makar Sankranti

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इस पर्व को आरंभ करने का श्रेय वैदिक ऋषि " विश्वामित्र" जी को दिया जाता है। यह पर्व फसल के मौसम के शुरूआत का प्रतीक है। मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जिसे देवताओं का सुबह माना गया है। इस दिन को स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान के रूप में अधिक महत्व दिया जाता है।  महाभारत काल में भीष्म पितामह ने इसी दिन को अपना देह त्यागने के लिए चुने थे क्योंकि ये तिथि उत्तरायण की तिथि है। इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति में प्रवेश करने के बीच के समय को "सौर मास" कहते हैं। इस दिन सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ना प्रारंभ करता है।  इस पर्व को अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे: आंध्र प्रदेश में पेद्दा पांडुगा, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, असम में माघ बिहू, मध्य और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में माघ मेला, पश्चिम में मकर संक्रांति, केरल में शंकरंती, और अन्य नामों से।  मकर संक्रांति के पीछे कुछ खास कहानी है जिसे मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूं :  ...

दिपावली The Happy Day

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दिपावली का त्योहार आते ही लोगों के मन खुशी से झूम उठता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के अमावस्या को खुशीपूर्वक मनाया जाता है।  लोग अपने घर में मिट्टी के घरौंदा बनाते हैं। दीवाली के दिन घर में मिट्टी का घरौंदा बनाने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। दिवाली सनातन धर्म का सबसे बड़ा और खुशियों का पर्व है। इस दिन लोग अपने अपने घरों में अच्छी अच्छी पकवान बनाते हैं। अपने अपने घरों में तथा दूकानों में दिवाली के रात लोग मां लक्ष्मी और साथ में गणेश जी की पूजा करते हैं और अपने घर आंगन को से फूल मालाओं से सुशोभित कर देते हैं। आइए इस त्यौहार के बारे में थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं।  दिवाली आध्यात्मिक " अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और अज्ञान पर ज्ञान की जीत " का प्रतीक है। यहाँ प्रकाश शब्द ज्ञान और चेतना के प्रतीक के रूप में कार्य करता है। यही कारण है कि त्योहार के दौरान लैंप, मोमबत्तियाँ और लालटेन कई निजी और सार्वजनिक स्थानों को रोशन करते हैं। दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, मां लक्ष्मी धन की देवी...

विश्वकर्मा पूजा

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 दोस्तों, हर साल सितंबर महीने में आने वाले यह विश्वकर्मा पूजा कौन नहीं मनाते हैं? हर कोई इस पूजा का इंतजार करते हैं। और समय आने पर लोग इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। लोग अपने औजार मशीन के पूजा करते हैं। लोग कारखाने और औद्योगिक संस्थानों में प्रसाद धूप अगरबत्ती आदि चढ़ाकर पूजा करते हैं। विश्वकर्मा जी पर चढ़े प्रसाद को लोगों में खूशी पूर्वक बांट दिये जाते हैं। आइए हम सब मिलकर इस पूजा के बारे में और अधिक जानते हैं।  ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' और धर्म के पुत्र 'वासुदेव' थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 'वस्तु' से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे,जो शिल्पशास्त्र में बहुत ही बुद्धिमान थे। वासुदेव की पत्नी अंगिरसी' ने भगवान विश्वकर्मा को जन्म दिया। आगे चलकर अपने पिता के तरह ही भगवान विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बनें। इनका विवाह कौषिक की कन्या जयन्ती के साथ हुआ था। इनके कुल में लोक त्वष्ठा, तन्तु, वर्धन, हिरण्यगर्भ शुल्पी अमलायन ऋषि उत्पन्न हुये है। वे देवताओं में पूजित ऋषि थे। विश्वकर्मा के चौथे महर्षि शिल्पी पुत्र थे। विश्वकर्मा जी के पांच बच्चे थ...

मां दुर्गा

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मां दुर्गा हिंदुओं के प्रमुख देवी मानी जाती हैं, जिन्हें हम माता माता रानी आद्या शक्ति देवी भगवती जगत जननी जगदंबा परमेश्वरी परम सनातनी देवी आदि नामों से जानते हैं। दुर्गा को आदि शक्ति परम भगवती पर ब्रह्म माना गया है।उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं। दुर्गा देवी आठ भुजाओं से युक्त हैं जिन सभी में कोई न कोई शस्त्रास्त्र होते है। मां दुर्गा की सवारी सिंह है।उन्होने महिषासुर नामक असुर का वध किया।जिन ज्योतिर्लिंगों में देवी दुर्गा की स्थापना रहती है उनको सिद्धपीठ कहते है। वहाँ किये गए सभी संकल्प पूर्ण होते है। माता का दुर्गा देवी नाम दुर्गम नाम के महान दैत्य का वध करने के कारण पड़ा।  पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। मां दुर्गा का मुख्य रूप "गोरी" है। मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव ने मनुष्‍य जाति की रक्षा के लिए एक परम गुप्‍त, परम उपयोगी और मनुष्‍य का कल्‍याणकारी देवी कवच एवं व देवी सुक्‍त बताया है और कहा है कि जो मनुष्‍य इन उपायों को करेगा, वह इस संसार में सुख भोग कर अन्‍त समय में बैकु...

गायत्री मंत्र

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ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥ अर्थ:- हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।  गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है, जिसकी महत्ता ॐ के बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मन्त्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। इस मंत्र की रचना विश्वामित्र ने की थी। यह मंत्र 24 अक्षरों से मिलकर बना है। कहा जाता है कि इन 24 अक्षरों में चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां, चौबीस सिद्धियां और चौबीस शक्ति बीज भी शामिल हैं। इस मंत्र के जाप से इन सभी शक्तियों का लाभ और सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इसके शुद्ध तरीके और नियमानुसार जाप करने से जीवन की हर परेशानी दूर हो सकती है। संकल्प शक्ति चेतन सत्- संभव होने से ब्रह्मा की पुत्री है। परमाणु शक्ति स्थूल...

छठ महापर्व

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छठ पर्व का समय आते ही श्रद्धालुओं के मन उल्लास से भर जाता है।  कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की षष्‍ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्‍य देकर उत्‍सव मनाया जाता है। हम सभी इसे महापर्व छठ के नाम से जानते हैं। वैसे तो छठ की शुरुआत चतुर्थी से ही नहाय खाय का परंपरा के साथ हो जाती है और फिर खरना , उषा अर्घ्‍य और सांध्‍य अर्घ्‍य के साथ यह त्‍योहार अब पूरे देश में धूमधाम से मनता है। इस व्रत भगवान सूर्य की आराधना पूरी लगन और निष्‍ठा के साथ की जाती है और छठी मैय्या का यह पर्व पूरी श्रृद्धा के साथ मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से आपकी संतान सुखी रहती है और उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है। वहीं छठी मैय्या निसंतान लोगों की भी खाली झोली भर देती हैं। आइए जानते हैं कौन हैं यह छठी मैय्या और क्‍या हैं इनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं… पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं षष्ठी मैय्या। इस व्रत में षष्ठी मैया का पूजन किया जाता है इसलिए इसे छठ व्रत के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृष्‍ट‍ि रचने के लिए स्‍वयं...

एक बुद्धिमान चूहा

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 एक बार एक बिल्ली थी, वो बहुत ही चालाक और चौकस थी और उसकी इसी चालाकी और चौकसी को देखकर चूहे भी सावधान हो गये थे और अब चूहे बिल्ली के हाथ नहीं आ रहे थे।एक समय ऐसा आया कि बिल्ली भूख के मारे तड़पने लगी। एक भी चूहा उसके हाथ नहीं आता था, क्योंकि वो उसकी आहट सुनते ही तेज़ी से अपने बिल में छुप जाते थे। भूख से बचने के लिए बिल्ली योजना बनाने लगी। तभी उसके दिमाग में कुछ आया और वो एक टेबल पर उल्टी लेट गई। उसने सभी चूहों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वो मर चुकी है।सारे चूहे बिल्ली को ऐसे लेटा हुआ अपने बिल से ही देख रहे थे। उन्हें पता था कि बिल्ली बहुत चालाक है, इसलिए उनमें से कोई भी चूहा अपने बिल से बाहर नहीं आया।लेकिन, बिल्ली भी हार मानने वालों में से नहीं थी। वो बहुत देर तक उसी टेबल पर उल्टी लेटी रही।  धीरे-धीरे चूहों को लगने लगा कि बिल्ली मर चुकी है। वो जश्न मनाते हुए अपने बिल से निकलने लगे।चूहे जैसे ही बिल्ली की टेबल के पास पहुँचे, उसने उछलकर दो चूहे पकड़ लिए। इस तरह बिल्ली ने इस बार तो अपने पेट को भर लिया, लेकिन चूहे अब और भी ज़्यादा सतर्क हो गए।दो चूहे खाने के बाद बिल्ल...

Rising Science of India: चंद्रयान-3 a brief description.

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Happy India! We are on the moon. India is the first country in the world to have reached the south pole of the moon. चंद्रयान-3 का एकीकृत मॉड्यूल, कैप्सूल में भरे जाने से ठीक पहले  चंद्रयान-3 चाँद पर खोजबीन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा भेजा गया तीसरा भारतीय चंद्र मिशन है।इसमें चंद्रयान-2 के समान एक लैंडर और एक रोवर है, लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं है। चंद्रयान-3 यह मिशन चंद्रयान-2 की अगली कड़ी है, क्योंकि पिछला मिशन सफलता पूर्वक चाँद की कक्षा में प्रवेश करने के बाद अंतिम समय में मार्गदर्शन सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के कारण सॉफ्ट लैंडिंग में विफल हो गया था, सॉफ्ट लैंडिंग का पुनः सफल प्रयास करने हेतु इस नए चंद्र मिशन को प्रस्तावित किया गया था। चंद्रयान-3 का लॉन्च सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (शार), श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई, 2023 शुक्रवार को भारतीय समय अनुसार दोपहर 2:35 बजे हुआ था। यह यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास की सतह पर 23 अगस्त 2023 को भारतीय समय अनुसार सायं 06:04 बजे के आसपास सफलतापूर्वक उतर चुका है। इसी के साथ भारत चंद्रम...

Rising Science of India: चंद्रयान-3 a brief description

गौरी गौरा पुजा महोत्सव (Gauri Gaura Puja mahotsav)