विश्वकर्मा पूजा
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दोस्तों, हर साल सितंबर महीने में आने वाले यह विश्वकर्मा पूजा कौन नहीं मनाते हैं? हर कोई इस पूजा का इंतजार करते हैं। और समय आने पर लोग इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। लोग अपने औजार मशीन के पूजा करते हैं। लोग कारखाने और औद्योगिक संस्थानों में प्रसाद धूप अगरबत्ती आदि चढ़ाकर पूजा करते हैं। विश्वकर्मा जी पर चढ़े प्रसाद को लोगों में खूशी पूर्वक बांट दिये जाते हैं। आइए हम सब मिलकर इस पूजा के बारे में और अधिक जानते हैं।
श्री विश्वकर्मा पूजा दिवस भारत के कर्नाटक, असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और त्रिपुरा आदि प्रदेशों में यह आम तौर पर हर साल 17 सितंबर की ग्रेगोरियन तिथि को मनायी जाती है। यह उत्सव प्रायः कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों में (प्रायः शॉप फ्लोर पर) मनाया जाता है। विश्वकर्मा को विश्व का निर्माता तथा देवताओं का वास्तुकार माना गया है। यह हिंदू कैलेंडर की 'कन्या संक्रांति' पर पड़ता है।
सूर्यदेव भगवान विश्वकर्मा के दामाद हैं और भगवान विश्वकर्मा ने ही सूर्यदेव की किरणों को आकार दिया है। भगवान विश्वकर्मा का जिक्र 12 आदित्यों और ऋग्वेद में होता है. विश्वकर्मा जयंती साल में दो बार मनाई जाती है. विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर के दिन कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है, लेकिन वहीं राजस्थान और गुजरात के कुछ इलाकों में भगवान विश्वकर्मा का जन्म 7 फरवरी को मनाया जाता है. विश्वकर्मा को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। विश्वकर्मा को दुनिया में सबसे पहले वास्तु और इंजीनियरिंग की उपाधि दी गई है। वह पूरे ब्रह्मांड के दिव्य शिल्पकार और सभी देवताओं के महलों के आधिकारिक निर्माता हैं।
विश्वकर्मा पूजा के दिन औजारों, मशीन और उपकरणों की पूजा अर्चना करना चाहिए। ऐसा करने से घर में धन की कमी नहीं होती है। विश्वकर्मा पूजा के दिन औजारों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार माना जाता है।
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