बुद्ध शिष्य आनंद और वैश्या की कहानी (Buddh shishya Anand aur vaishya ki kahani)

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एक समय था जब भगवान बुद्ध की शरण में दीक्षा ले रहे भिक्षुओं को कई नियमों का पालन करना पड़ता था। वे (भिक्षु) किसी के भी घर तीन दिन तक ही रुक सकते थे। यह नियम स्वयं गौतम बुद्ध ने बनाया था। इस नियम का तात्पर्य यह था कि उनकी सेवा में लगे लोगों को किसी तरह की कोई दिक्कत न पहुंचे। बुद्ध और उनके भिक्षु जब यात्राओं पर निकलते थे, तो वे रास्ते में आने वाले अक्सर गरीब घरों में ही शरण लेते थे। वे इन घरों में अधिकतम तीन दिनों तक रुकने के बाद अगली यात्रा पर निकल जाते थे। एक समय की बात है वे इसी तरह यात्रा के दौरान एक गांव पहुंचे। बुद्ध और उनके शिष्य अपने रहने के लिए जगह ढूंढ रहे थे। बुद्ध के शिष्य आनंद को एक बहुत ही खूबसूरत वेश्या ने अपने घर रहने को आमंत्रित किया। आनंद ने उसे कहा कि वह उसके घर बुद्ध के अनुमति लेकर ही रह सकता है। वैश्या युवती ने वासना भारी श्वर में कही- क्या  तुम्हें इसके लिए सचमुच अपने गुरू से अनुमति लेनी होगी? मैं जानता हूं कि वह मेरे बात मान जाएंगे लेकिन उनसे पूछना मेरा कर्तव्य बनता है। आनंद ने बुद्ध से पूछा- हे बुद्ध! इस गांव में...

मकर संक्रांति Makar Sankranti

इस पर्व को आरंभ करने का श्रेय वैदिक ऋषि " विश्वामित्र" जी को दिया जाता है। यह पर्व फसल के मौसम के शुरूआत का प्रतीक है।
मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जिसे देवताओं का सुबह माना गया है। इस दिन को स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान के रूप में अधिक महत्व दिया जाता है।

 महाभारत काल में भीष्म पितामह ने इसी दिन को अपना देह त्यागने के लिए चुने थे क्योंकि ये तिथि उत्तरायण की तिथि है। इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति में प्रवेश करने के बीच के समय को "सौर मास" कहते हैं। इस दिन सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ना प्रारंभ करता है। 

इस पर्व को अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे: आंध्र प्रदेश में पेद्दा पांडुगा, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, असम में माघ बिहू, मध्य और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में माघ मेला, पश्चिम में मकर संक्रांति, केरल में शंकरंती, और अन्य नामों से। 

मकर संक्रांति के पीछे कुछ खास कहानी है जिसे मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूं : 
१. ऐसा माना जाता है कि संक्रांति, जिसके नाम पर इस त्योहार का नाम रखा गया है, एक देवता थे जिन्होंने शंकरासुर नामक राक्षस को मार डाला था और मकर संक्रांति के अगले दिन, जिसे कारिदिन या किंक्रांत कहा जाता था, देवी ने खलनायक किंकारासुर को मार डाला था।

२. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। 

३. एक समय भगीरथी अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए और लोगों के कल्याण के लिए घोर तपस्या करके इस धरती पर मां गंगा को लाए थे । मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

इस दिन बच्चे खूब पतंग उड़ाते हैं। मस्तियां करते हैं।
इस दिन लोग अपने-अपने घरों में दही चुरा तिलकुट तिलवा तिल खाते हैं। इस दिन तिल और मूंग दाल की खिचड़ी खानी चाहिए। इनमें से किसी भी चीज का सेवन स्नान आदि करने के बाद ही सेवन करना चाहिए। 

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