दिपावली का त्योहार आते ही लोगों के मन खुशी से झूम उठता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के अमावस्या को खुशीपूर्वक मनाया जाता है।
लोग अपने घर में मिट्टी के घरौंदा बनाते हैं। दीवाली के दिन घर में मिट्टी का घरौंदा बनाने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। दिवाली सनातन धर्म का सबसे बड़ा और खुशियों का पर्व है। इस दिन लोग अपने अपने घरों में अच्छी अच्छी पकवान बनाते हैं। अपने अपने घरों में तथा दूकानों में दिवाली के रात लोग मां लक्ष्मी और साथ में गणेश जी की पूजा करते हैं और अपने घर आंगन को से फूल मालाओं से सुशोभित कर देते हैं। आइए इस त्यौहार के बारे में थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं।
दिवाली आध्यात्मिक " अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और अज्ञान पर ज्ञान की जीत " का प्रतीक है। यहाँ प्रकाश शब्द ज्ञान और चेतना के प्रतीक के रूप में कार्य करता है। यही कारण है कि त्योहार के दौरान लैंप, मोमबत्तियाँ और लालटेन कई निजी और सार्वजनिक स्थानों को रोशन करते हैं।
दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, मां लक्ष्मी धन की देवी है। हिंदू धर्म और शास्त्र के मुताबिक यह कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के दिन समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का जन्मदिन मनाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
रामायण में बताया गया है कि भगवान श्रीराम जब लंका के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी। भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दिवाली मनाई गई थी। हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे। और इसी दिन से हर साल लोग दीवाली मनाना शुरू कर दिए।
दीपावली को हम कई नाम से जानते हैं जैसे दीवाली, दीपमाला, दीपोत्सव, दीपमालिका।
दिवाली उस दिन को चिह्नित करती है जब भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को हराया था और उसके राज्य के लोगों को मुक्त कराया था। राक्षस को मारने के बाद, भगवान कृष्ण ने इसे उत्सव का दिन घोषित किया।
जैन परंपरा के अनुसार, दीपक जलाने की यह प्रथा पहली बार 527 ईसा पूर्व में महावीर के निर्वाण के दिन शुरू हुई थी, जब 18 राजा जो महावीर की अंतिम शिक्षाओं के लिए एकत्र हुए थे, ने एक उद्घोषणा जारी की थी कि "महान प्रकाश, महावीर" की याद में दीपक जलाए जाएं।
बुद्ध धर्म के जानकारों के मुताबिक दीपावली पर गौतम बुद्ध तपस्या कर लौटे थे, इसलिए बुद्ध वंदना कर दीप जलते हैं। बताया जाता है कि इसी दिन उनके प्रिय साथी अरहंत मुगलयान का निर्वाण भी हुआ था। उनकी याद में भी ये पर्व मनाया जाता है।
एक ऐतिहासिक धारणा के अनुसार, यह अरब ही थे जिन्होंने चीन से भारत और यूरोप में बारूद तकनीक लाई। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बारूद के उपयोग के आतिशबाज़ी शो के शुरुआती संदर्भों में से एक अब्दुर रज्जाक द्वारा 1443 में बनाया गया था।
प्राचीनकाल में दिवाली को दीपोत्सव के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है दीपों का उत्सव।हालाँकि दिवाली मुख्य रूप से एक भारतीय त्योहार है, यह मलेशिया, सिंगापुर, नेपाल और फिजी में भी व्यापक रूप से मनाया जाता है।
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