होली The Festival of colours
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प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, इसके बाद अगले ही दिन प्रतिपदा तिथि को रंगों की होली खेली जाती है। होली त्यौहार का अपना एक अलग ही महत्व है। इस दिन लोग खुशी से एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। सभी बच्चे एकजुट होकर होली खेलते हैं। वे सभी रंग घोल कर एक दूसरे के ऊपर पिचकारी छोड़ते हैं। सभी बच्चे खूब रंग मस्तियां करते हैं। फिर संध्याकाल को सभी बच्चे बड़े बुजुर्ग के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।
उस दिन लोग अपने-अपने घर में अच्छे-अच्छे पकवान पकाते हैं। सभी लोग अपने-अपने दोस्तों को घर में बुलाकर विशेष पकवान खुशीपूर्वक खाते हैं। सच में यह एक अनोखा पर्व है। यह पर्व जोश और उत्साह का पर्व है। लोग इस पर्व में खूब मस्तियां करते हैं। यह दिन अतीत की गलतियों को खत्म करने और खुद से छुटकारा पाने का उत्सव का दिन है, दूसरों से मिलकर संघर्षों को खत्म (समाप्त) करने का दिन है, भूलने (विस्मरण) और माफ करने का दिन (दिवस) है।
होली का इतिहास बहुत पुराना है। इस पर्व का उल्लेख कई एतिहासिक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित मिलता है। "होलिकोत्सव" के त्योहार का उल्लेख 7वीं (7th century) शताब्दी में राजा हर्ष की कृति रत्नावली में भी किया गया था। इसका उल्लेख पुराणों, दशकुमार चरित्र और चंद्रगुप्त द्वितीय के चौथी शताब्दी (4th century) के शासनकाल के दौरान कवि कालिदास द्वारा किया गया है। होली के उत्सव का उल्लेख 7वीं शताब्दी (7th century) के संस्कृत नाटक रत्नावली में भी किया गया है।
होलिका दहन की कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक राजा थे जिनका नाम हिरण्यकश्यप था। उनका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उनकी भक्ति में लीन रहता था। हिरण्यकश्यप को यह बात पसंद न थी अतः उन्होंने प्रह्लाद को कई तरीकों से मारने का प्रयास भी किया। अंत में उन्होंने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाए जिसके फलस्वरूप होलिका जल कर मर गईं और भक्त प्रह्लाद बच गए।
जिसके पश्चात हिरण्यकश्यप की क्रूरता को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिये और हिरण्यकश्यप को समाप्त कर दिया। तभी से होलिका दहन का प्रचलन शुरू हुआ। होलिका की अग्नि में बुराइयों के समाप्त होने के बाद खुशियां मनाने के लिए अगले दिन रंग खेलने की प्रथा भी शुरू हुई।
होली की शुरुआत और मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में मनाई जाती है, परंतु यह भारतीय प्रवासियों के माध्यम से एशिया के अन्य क्षेत्रों और पश्चिमी दुनिया के कुछ हिस्सों में भी फैलती चली गई। वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार भी होली का पर्व उचित है। जिस समय होली मनाई जाती है उस समय वातावरण में बैक्टीरिया चरम पर होता है। होलिका दहन की परंपरा वातावरण में तापमान को बढ़ा देती है, जिसके कारण बैक्टीरिया और संक्रमण का प्रभाव कम हो जाता है।
होली पर बाजार में अनेकों रसायन युक्त रंग बिक रहे हैं। इन रासायनिक युक्त रंगों का प्रयोग लोगों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है। ऐसे में लोगों को जागरूक होने की जरूरत है, ताकि रासायनिक युक्त रंगों की बजाए नेचुरल रंगों का प्रयोग करें।रासायनिक रंगों के इस्तेमाल से उन लोगों की सेहत बिगड़ सकती है जिन्हें पहले से अस्थमा है। कई प्रकार के रसायन होते हैं जो श्वसन पथ में प्रवेश कर सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं। इससे अस्थमा का दौरा पड़ सकता है। अगर किसी व्यक्ति में सीने में जकड़न, सांस लेने में तकलीफ, खांसी और ऑक्सीजन का स्तर कम होने जैसे लक्षण हैं, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें। ऐसे में जो लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। उन्हें अपने साथ इनहेलर रखना चाहिए। कई लोग ऐसे होते हैं जिनके शरीर पर फंगल इंफेक्शन हो जाता है। रासायनिक रंग इस समस्या को बढ़ा सकते हैं। इसलिए त्वचा पर खुजली, लाल दाने, जलन जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इससे समस्या बढ़ सकती है।
इसलिए रसायनिक रंग से सतर्क रहें, स्वस्थ्य रहें।
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