भाई दूज भारत में मनाए जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है। यह पर्व नेपाल में भी मनाया जाता है। यह पर्व भाई और बहन के पावन रिश्ते के महत्व को दर्शाता है| यह पर्व ‘रक्षा बंधन’ के जैसे ही लोकप्रिय उत्सव हैं। इस विशेष अवसर पर भाई अपनी बहनों को कई उपहारें देती हैं और बहनें अपने भाइयों को मिठाई देती हैं।भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों का तिलक करती हैं और उनके सुख-समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों के पैरों को छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मान्यता है कि जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाता है, उसे अनिश्चित मृत्यु का भय नहीं रहता। भाई दूज को यम द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यमराज के वर के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके यम पूजन करता है तो उसे मृत्यु के पश्चात यमलोक में नहीं जाना पड़ता।
भाई दूज के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके घर के मंदिर में घी का दीपक जलाकर ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। इस दिन यमराज और यमुना के साथ भगवान गणेश और भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। इस दिन पिसे चावल से चौक बनाने की परंपरा भी है। इसके बाद बहनें, भाई को तिलक लगाती हैं और फिर आरती उतारती हैं। हाथ में कलावा बांधकर मिठाई खिलाती हैं। इसके बाद बहनें, भाई के हाथ में नारियल देकर भोजन करवातीं हैं। भोजन के बाद भाई, बहनों को उपहार देते हुए चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेता है।
सूर्य की पत्नी संज्ञा से दो संतानें थीं, पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उन्हें ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहाँ से चली गई। छाया को यम और यमुना से अत्यधिक लगाव तो नहीं था, किंतु यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं।यमुना अपने भाई यमराज के यहाँ प्राय: जाती और उनके सुख-दुःख की बातें पूछा करतीं। तथा यमुना, यमराज को अपने घर पर आने के लिए भी आमंत्रित करतीं, किंतु व्यस्तता तथा अत्यधिक दायित्व के कारण वे उसके घर न जा पाते थे।
एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुँचे। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। जब वे वहाँ से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया।
यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा: भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहाँ आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो वे यमराज के प्रकोप से बचे रहेंगे।
यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। भैया दूज त्यौहार का मुख्य उद्देश्य, भाई-बहन के मध्य सद्भावना, तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। भैया दूज के दिन ही पांच दीनो तक चलने वाले दीपावली उत्सव का समापन भी हो जाता है।
इस दिन अगर अपनी बहन न हो तो ममेरी, फुफेरी या मौसेरी बहनों को उपहार देकर ईश्वर का आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं। जो पुरुष यम द्वितीया को बहन के हाथ का खाना खाता है, उसे धर्म, धन, अर्थ, आयुष्य और विविध प्रकार के सुख मिलते हैं। साथ ही यम द्वितीय के दिन शाम को घर में बत्ती जलाने से पहले घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान करना भी फलदायी होता है।
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