बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके संस्थापक भगवान बुद्ध थ। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। गौतम बुद्ध ने जिस ज्ञान की प्राप्ति की थी उसे ‘बोधि’ कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि बोधि पाने के बाद ही संसार से छुटकारा पाया जा सकता है।
वैशाख महीने की पूर्णिमा को ही बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान पुण्य करना शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन नदियों तथा पवित्र सरोवरों में स्नान करना लाभकारी माना जाता है।
यह बात की जानकारी मिलती है कि भगवान बुद्ध के समय किसी भी प्रकार का कोई पंथ या सम्प्रदाय नहीं था किंतु बुद्ध के निर्वाण के बाद द्वितीय बौद्ध संगति में भिक्षुओं में मतभेद के चलते दो भाग हो गए। यह बात पता चलती है कि पहले को हिनयान और दूसरे को महायान कहते हैं। महायान शब्द का अर्थात बड़ी गाड़ी या नौका और हिनयान शब्द का अर्थात छोटी गाड़ी या नौका, थेरवाद भी कहते हैं। इस बात का उल्लेख हुआ है कि महायान के अंतर्गत बौद्ध धर्म की एक तीसरी शाखा थी वज्रयान।
महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म में सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक, राजनीतिक, स्वतंत्रता एवं समानता की शिक्षा दी है। बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी अनात्मवादी है अर्थात इसमें ईश्वर और आत्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं किया गया है, किन्तु इसमें पुनर्जन्म को मान्यता दी गयी है। बुद्ध ने सांसारिक दुःखों के सम्बन्ध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया। ये आर्य सत्य बौद्ध धर्म का मूल आधार हैं। जैसे:-
१. दुःख – संसार में सर्वत्र दुःख है। जीवन दुःखों व कष्टों से भरा है। संसार को दुःखमय देखकर ही बुद्ध ने कहा था- “सब्बम् दुःखम्”।
२. दुःख समुदाय – दुःख समुदाय अर्थात दुःख उत्पन्न होने के कारण हैं। प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। अतः दुःख का भी कारण है। सभी कारणों का मूल अविद्या तथा तृष्णा है। दुःखों के कारणों को “प्रतीत्य समुत्पाद” कहा गया है। इसे “हेतु परम्परा” भी कहा जाता है।
प्रतीत्य समुत्पाद बौद्ध दर्शन का मूल तत्व है। अन्य सिद्धान्त इसी में समाहित हैं। बौद्ध दर्शन का क्षण-भंगवाद भी प्रतीत्य समुत्पाद से उत्पन्न सिद्धान्त है। प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ है कि संसार की सभी वस्तुयें कार्य और कारण पर आधारित हैं। संसार में व्याप्त हर प्रकार के दुःख का सामूहिक नाम “जरामरण” है। जरामरण के चक्र (जीवन चक्र) में बारह क्रम हैं- जरामरण, जाति (शरीर धारण करना), भव (शरीर धारण करने की इच्छा), उपादान (सांसारिक विषयों में लिपटे रहने की इच्छा), तृष्णा, वेदना, स्पर्श, षडायतन (पाँच इंद्रियां तथा मन), नामरूप, विज्ञान (चैतन्य), संस्कार व अविद्या। प्रतीत्य समुत्पाद में इन कारणों के निदान की अभिव्यंजना की गई है।
३. दुःख निरोध – दुःख का अन्त सम्भव है। अविद्या तथा तृष्णा का नाश करके दुःख का अन्त किया जा सकता है।
4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा – अष्टांगिक मार्ग ही दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा हैं।
बौद्ध धर्म की विशेषताएं:-
बौद्ध धर्म में अनात्मामवा जाता है। महात्मा बुद्ध के अनुसार इसका अर्थ यह है कि संसार में ना कोई आत्मा है और ना ही आत्मा की तरह कोई अन्य वस्तु। बौद्ध धर्म “मध्यम-मार्ग” में विश्वास रखता है। पशुओं और अहिंसा की रक्षा पर बौद्ध धर्म जोर देता है।महात्मा बुद्ध के अनुसार, मानव स्वयं अपने भाग्य का निवारण करने वाला होता है, इसके लिए कोई ईश्वर नहीं होता है। इसलिए बौद्ध धर्म वेदों और ईश्वर की प्रमाणिकता पर विश्वास नहीं करता है।
बौद्ध धर्म की सारी शिक्षा का सारांश ‘चार्य आर्य सत्य’ में मिलता है।
जब बुध को सच्चे बोध की प्राप्ती हुई तो वे मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे। यह बात भी जानने को मिलती है कि वहीं पर उन्होंने सबसे पहला धर्मोपदेश दिया। जिसमें उन्होंने लोगों से मध्यम मार्ग अपनाने के लिए कहा। साथ में इस बात का उल्लेख भी हुआ है कि चार आर्य सत्य पर जोर दिया, और यज्ञ, कर्मकांड और पशु-बलि की निंदा की।
भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्य थे:-
आनंद,
अनिरुद्ध,
महाकश्यप,
उपाली
महाप्रजापति (महिला),
रानी खेमा (महिला),
भद्रिका,
भृगु,
किम्बाल,
देवदत्त आदि।
भगवान बुद्ध (बौद्ध धर्म) के प्रमुख प्रचारक इस प्रकार हैं:-
अँगुलिमाल,
मिलिंद (यूनानी सम्राट),
सम्राट अशोक,
ह्वेन त्सांग,
फाह्यान,
ई जिंग,
हे चो आदि।
बौद्ध धर्म के मूल तत्व:-
चार आर्य सत्य,
आष्टांगिक मार्ग,
प्रतीत्यसमुत्पाद,
अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन,
बुद्ध कथाएँ,
अनात्मवाद
निर्वाण।
यह सबसे अहम बात है कि बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटक के तीन भाग है-
१.विनयपिटक,
२.सुत्तपिटक
३.अभिधम्मपिटक।
इस बात का उल्लेख किया गया है कि उक्त पिटकों के अंतर्गत उप-ग्रंथों की विशाल श्रृंखलाएँ है। इस बात की जानकारी मिलती है कि सुत्तपिटक के पाँच भाग में से एक खुद्दक निकाय की पंद्रह रचनाओं में से एक है धम्मपद। सब में से धम्मपद ज्यादा प्रचलित है।
लुम्बिनी,
बोधगया,
सारनाथ
कुशीनगर
ये चार प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल है। जहाँ विश्वभर के बौद्ध अनुयायी बौद्ध पर्व पर इकट्ठा होते हैं। लुम्बिनी तीर्थ नेपाल में है। बोधगया भारत के बिहार में है। सारनाथ भारत के उत्तरप्रदेश में काशी के पास हैं। और कुशीनगर उत्तरप्रदेश के गोरखपुर के पास का एक जिला है।
बौद्ध शिक्षा प्रणाली क्या है?
बौद्ध शिक्षा प्रणाली बुनियादी जीवन के आधार पर विकसित की गई थी। यह शिक्षा छात्र के नैतिक, मानसिक और शारीरिक विकास पर आधारित होती है। यह छात्रों को संघ के नियमों की ओर मोड़ता है और उनका पालन करने के लिए मार्गदर्शन करता है।
5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में वापस, बौद्ध शिक्षा मूल रूप से भगवान बुद्ध द्वारा सिखाई गई थी और इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि यह मठवासी है और सभी जातियों को शामिल करता है (भारत में उस समय जाति व्यवस्था व्यापक रूप से प्रचलित थी)। बौद्ध शिक्षा प्रणाली का केंद्रीय उद्देश्य एक बच्चे के व्यक्तित्व के सर्वांगीण और समग्र विकास को सुगम बनाना है। चाहे वह बौद्धिक और नैतिक विकास के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक विकास हो।
शिक्षा का उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है और उसी के अनुसार पूरी व्यवस्था स्थापित की जाती है।
इस प्रकार की शिक्षा मुख्य रूप से मठों, विहारों और मठों में प्राप्त की जाती है और इस प्रणाली का प्रबंधन भिक्षुओं द्वारा किया जाता है। श्रमणों और भिक्षुओं का मठवासी जीवन हमेशा भारत का हिस्सा रहा है इसलिए चीन, जापान, कोरिया, जावा, बर्मा, सीलोन, तिब्बत आदि देशों के कई छात्र ज्ञान प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं।
इस शिक्षा प्रणाली का शिक्षण के प्रति व्यापक और सकारात्मक दृष्टिकोण है। इसलिए बौद्ध शिक्षा प्रणाली में सभी जातियों, धर्मों और नस्लों के छात्रों का समानता के साथ स्वागत किया जाता है। यह भारत में लोकप्रिय होने के प्रमुख कारणों में से एक है, क्योंकि ब्राह्मणवादी शिक्षा प्रणाली समावेशी नहीं थी।
धार्मिक और दार्शनिक पहलुओं के साथ-साथ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा को महत्व दिया जाता है।
एक सामंजस्यपूर्ण शिक्षक-छात्र संबंध बनाए रखा जाता है। शिक्षक छात्रों को समान सम्मान देता है और छात्र से समान स्नेह प्राप्त करता है। यह एक अनुशासित जीवन स्थापित करने में मदद करता है।
जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ जैसे कताई, बुनाई, ड्राइंग, चिकित्सा आदि पाठ्यक्रम का एक हिस्सा हैं। ये बुनियादी कौशल छात्रों को स्वतंत्र होने में मदद करते हैं।
सीखने की प्रक्रिया व्याख्यान, पूछताछ और चर्चा के माध्यम से की जाती है।
बुशिस्ट शिक्षा प्रणाली को जीवन की विभिन्न समस्याओं के ठोस समाधान खोजने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
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